अनादि काल से चले आ रहे हम सब (आत्माओं) के वास्तविक शासक (मुखिया) ईश्वर सत्य { (वास्तविक परमात्मा राम) वास्तविक रामनाम } को पूर्ण प्रकाश में लाकर उसका पूर्ण आश्रय लेने और उसे पूर्ण अमल में लाने के लिए उस ढ़ाई अक्षर के प्रेम ( केवल एक रामनाम का पूर्ण आश्रय ) लेना ही एक मात्र उपाय है और ईश्वर सत्य और उसकी प्रकृति (ईश्वर सत्य की प्रकृति स्वभाव) एक ही सिक्के के दो पहलु हैं और उसी ढ़ाई अक्षर के प्रेम (भगवत रामनाम) को समझाने के लिए सारे वेद शास्त्र आदि एक पौथन्ना हैं अत: उसी ढ़ाई अक्षर के प्रेम भगवत रामनाम { (अनादि काल से चले आ रहे हम सबके वास्तविक शासक ईश्वर सत्य सनातन वास्तविक परमात्मा राम) ईश्वर सत्य } को पूर्ण प्रकाश में कबीर दास जी की भांति अपने सदगुरु तक से पूर्णता असंग होकर लाना ही अपने सदगुरु (ईश्वर सत्य ) के शासन में जीना है और यही वास्तविक शिष्य { (वास्तविक गुरु भक्त) और अनादि काल से चली आ रही वास्तविक गुरु परंपरा } है ?
परमात्मा की आकृति {( प्रकृति ) स्वभाव } से ही अपने शरीर की भांति सच्चा ढ़ाई अक्षर प्रेम करने से ही परमात्मा को पाना सम्भव है और किसी प्रकार किसी भी शर्त पर परमात्मा को पाना सम्भव ही नहीं वरन नामुमकिन ही है इसी परमात्मा की आकृति { (प्रकृति) स्वभाव } में अपनी आत्मा की जन्म जन्मांतर से बनी चली आ रहीं वृतियां एकाकार करने (मिलाने) के लिए केवल राम (भगवत) नाम का पूर्ण आश्रय लेने के लिए ही सारे नियम कायदे पूजा साधना आराधना उपासना जप तप योग्य और वियोग तुरीया सुषमावस्था आदि किए जाते हैं इसी अवर्णीय सत्य (ईश्वर) को आज हमारे समाज की अति विषम स्थिति परिस्थितियों आदि को दृष्टिगत रखते हुए बड़े ही सरल ,साधारण और बड़े ही कम शब्दो में उतारने (समझाने) का प्रयास किया है पर यह दूध से निकले मख्खन (घी) के उपरान्त शेष बचे छांछ (मठठा) की भांति है इस पूर्ण वास्तविक सत्य को जानने के लिए हम सबको स्वयं ही अपने अनुभव के द्वारा स्वयं ही महसूस करना पड़ेगा।
नोट- यह हम सबके अनादि काल से चले आ रहे वास्तविक शासक ईश्वर सत्य सनातन (वास्तविक परमात्मा राम) ने अपनी सम्पूर्ण समस्त सृष्टि प्रकृति (स्वभाव) आदि को पूर्ण रक्षित सुरक्षित आदि करने के पूर्ण उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए हम सबको एक अन्तिम सन्धि प्रस्ताव भेजा है इसके बाद परमात्मा अपनी सम्पूर्ण प्रकृति आदि को पूर्ण रक्षित सुरक्षित आदि करने के लिए अपनी समस्त सृष्टि प्रकृति को ही खुली छूट दे देगें अर्थात उसके बाद यह सम्पूर्ण प्रकृति जिसकी हम सब बाल पर खाल उतार रहे हैं वह पलक झपकते ही अपने आपको पूर्ण रक्षित सुरक्षित आदि करने हेतु सम्पूर्ण समाज (विश्व) में मौत का ताण्डव नृत्य ( महाप्रलय प्रकोप) आदि कर अपने आप को पूर्ण रक्षित सुरक्षित आदि कर लेगी जिससे आमजन से लेकर देश के चपरासी और देश के चपरासी से लेकर देश के राजा और राजा से लेकर महाराजा (साधु सन्त, महन्त मंडलेश्वर गुरु जगतगुरु आदि) तक के हाथ में एक कटोरा आ जायेगा और इस प्रकृति से अपने पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होगी यह प्रकृति इतनी विषाक्त हो चुकी होगी। अर्थात आज जो यथा राजा तथा प्रजा एक कहावत कही जा रही है वहीं क्या राजा और क्या प्रजा कही जाने लगेगी अर्थात इस प्रकृति ने किसी को भी नहीं बक्शा। यह है अपने अनादि काल से चले आ रहे वास्तविक शासक ईश्वर सत्य सनातन वास्तविक परमात्मा राम और उसकी प्राप्ति के मार्ग सनातन धर्म { ( संस्कृति ) ईश्वर सत्य के स्वभाव प्रकृति } की बाल पर खाल उतारने का पूर्ण नतीजा जो अन्तिम दशा में हम सबके अनादि काल से चले आ रहे वास्तविक शासक (मुखिया) को यह अपना अन्तिम निर्णय (सम्पूर्ण विश्व में मौत ताण्डव का नृत्य) का जजमेंट लेना पडेगा।
अब हमसब आत्माओं में जो परम (श्रेष्ठ) हैं वही हम सब आत्माओं के परमात्मा और वास्तविक शासक (मुखिया) हैं। हम सब आत्माओं के अनादि काल से चले आ रहे हम सब आत्माओं के मुखिया (शासक) और उसकी प्रकृति स्वभाव (शासन) आदि को जानने की खातिर हम सब उसकी बाल पर खाल आदि नहीं उतार रहे हैं वरन अपने ही हाथों अपनी मौत को निमंत्रण दे रहे हैं अर्थात अपने अनादि काल से चले आ रहे वास्तविक शासक ईश्वर सत्य सनातन वास्तविक परमात्मा राम और उसकी प्राप्ति के मार्ग सनातन धर्म संस्कृति (ईश्वर की प्रकृति स्वभाव) को बिना तर्क वितर्क आदि किए राजी खुशी से अपने तहेदिल ( अपने सच्चे ह्रदय) से पूर्ण स्वीकार करने में ही हम सबकी पूर्ण भलाई (कल्याण) है। अन्यथा कि दृष्टि में हम सबके वास्तविक राजा की दृष्टि (प्रकृति स्वभाव) किस पल क्या हो जाए यह किसी को भी नहीं पता होता है। उक्त शब्दों आदि के माध्यम से हमने अपने अनादि काल से चले आ अपने वास्तविक शासक ईश्वर सत्य सनातन वास्तविक परमात्मा राम की समस्त सृष्टि प्रकृति आदि को पूर्ण रक्षित सुरक्षित आदि कर उसे एक धरोहर के रूप में उसके ज्यों के त्यों पूर्ण पुन: स्थापित कर उसे पूर्ण बरकरार रखकर उससे हमेशा के लिए ऊऋण होने का उससे पूर्ण आशीर्वाद लेना चाहा है हमारे अर्थक प्रयास आदि में यदि कोई जाने अंजाने आदि कोई भूल आदि हो गई हो तो उसे हे ईश्वर सत्य सनातन हमें क्षमा करना हमने आपको और आपकी प्रकृति (स्वभाव) आदि को जानने और उसकी बाल पर खाल उतारने आदि के उद्देश्य आदि से कभी अपने सपने में भी कोई भूल नहीं की है हमने आपके भगवत (राम) नाम का ही पूर्ण आश्रय लिया है और उसका अजपा अखण्ड जप कर उसे पूर्ण सिद्ध करना है यही एक पूर्ण आदर्श शिष्य का अपने सदगुरु और अपने अनादि काल से चले आ रहे वास्तविक शासक ईश्वर सत्य सनातन वास्तविक परमात्मा राम और उसकी प्राप्ति के मार्ग सनातन धर्म संस्कृति ईश्वर सत्य की प्रकृति स्वभाव) के शासन में (स्वत: जो हो रहा है उसमें) जीना है ऐसी प्रार्थना अपने वास्तविक शासक ईश्वर सत्य से करनी चाहिए।
अब परमात्मा ( वास्तविक राम) और उसकी प्रकृति आदि की पूजा आराधना पद्धति के संदर्भ में तो यही कि ईश्वर सत्य (परमात्मा राम) एक अवर्णीय निर्विकार निर्लेप और निराकार आदि हैं उसे शब्दों में व्यक्त किया जाना सम्भव ही नहीं है इसलिए ईश्वर सत्य को उसकी समस्त प्रकृति के किसी भी एक साकार विग्रह के रूप में चुन लिया जाए। वह विग्रह चाहे किसी भी प्रकृति (स्वभाव) धातु आदि का हो सकता है या फिर जीव निर्जीव ( मीरा जी को डसने के लिए भेजा गया सर्प ही क्यों न हो) उसे चुन लेना चाहिए उसमें हमारी ईश्वर सत्य (अपने प्राण पीतम अलख पुरुष परमात्मा राम) के प्रति तीव्र अथाह प्रेम आस्था आदि की तीव्र पूर्ण करुणामई पुकार रुदन आदि उसे मीरा जी के सालिक राम के रूप अवतरित कर ही देगी अर्थात एक राधा मीरा जी आदि की तरह अपने प्राण पीतम अलख पुरुष वास्तविक परमात्मा राम (कृष्ण) की प्रकृति स्वभाव (रजा में अपनी रजा ) में एकाकार कर स्वत: में ही जाना सीख लेना होगा यही स्वत: में जीना ही अपने प्राण पीतम अलख पुरुष परमात्मा राम की आकृति (प्रकृति स्वभाव ) में अपनी आकृति ( वृति स्वभाव ) एकाकार कर देना है तभी हमारे सदगुरु द्वारा दिया गया रामनाम का पूर्ण आश्रय का रामनाम का गले में धारण किया गया मंगलसूत्र पट्टा तुलसी आदि की कंठी ) गुरुमंत्र पूर्ण सार्थक है अर्थात गले में धारण की गई तुलसी आदि की कंठी आदि भी ईश्वर सत्य की एक प्रकृति ही तो है अर्थात तुलसी की तरह हमें भी ईश्वर सत्य (अपने प्राण पीतम अलख पुरुष परमात्मा राम) पर चढ़ जाना होगा अर्थात अपने प्राण पीतम अलख पुरुष परमात्मा राम पर पूर्ण न्योछावर (पूर्ण समर्पित) हो जाना पड़ेगा। अत: संक्षेप और निष्कर्ष में हमें अपने प्राण पीतम अलख पुरुष परमात्मा राम (कृष्ण) को पाने के लिए उसकी प्रकृति से अपने शरीर की भांति सच्चा ढ़ाई अक्षर प्रेम कर उसे ज्यों के त्यों पूर्ण रक्षित सुरक्षित आदि कर अपनी आने वाली आगामी पीढ़ियों को ज्यों के त्यों पूर्ण बरकरार रखकर देना होगा उसमें जो भी परत दर परत पीढ़ी दर पीढ़ी से जो अंधविश्वास पाखण्ड एवं कुरुतियों आदि की खामियां आदि आईं हैं उन्हें इसी प्रकार अपने सदगुरु तक से पूर्णता असंग होकर कबीर दास जी तरह अपने अनादि काल से चले आ रहे वास्तविक शासक ईश्वर सत्य सनातन वास्तविक परमात्मा राम और उसकी प्राप्ति के मार्ग सनातन धर्म संस्कृति (ईश्वर सत्य की प्रकृति स्वभाव) का ज्यों के त्यों पूर्ण वास्तविक रूप को पूर्ण प्रकाश में लाना होगा नाकि महर्षि दयानंद सरस्वती और कबीर दास जी के अनुयायियों आदि की तरह उनके नाम से ही मोह बस ईश्वर सत्य से पृथक एक नया सत्यार्थ प्रकाश आदि आड़ लेकर आर्य समाज और कबीर पंथ आदि धर्म सम्प्रदाय गुट आदि खड़ा कर देना है अर्थात जो अनादि काल से लगातार आज तक चला आ रहा हो उस सनातन (ईश्वर सत्य) को ज्यों के त्यों पूर्ण प्रकाश में लाना होगा जिसमें चाहे आपने सदगुरु तक के अंधविश्वास पाखण्ड एवं कुरुतियों आदि की धज्जियां कबीर दास जी की भांति ईश्वर सत्य को पूर्ण प्रकाश में लाने के साथ उड़ानी पड़ जाए तो बेझिझक उड़ा देनी पड़ती हैं अर्थात ईश्वर सत्य को ही पूर्ण प्रकाश में लाना पड़ता है।
आपका ईश्वर प्राप्ति की शून्य से शून्यता का सह हमराही मित्र सखा
अध्यक्ष
कौशल किशोर दास सदगुरु अवधूत श्री नृत्यगोपाल दास अयोध्या धाम।
Social Welfare
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Human Rights
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You are doing good work. i appreciate your work.
Well doing for child welfare